Facts About Shodashi Revealed

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श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१॥

एकस्मिन्नणिमादिभिर्विलसितं भूमी-गृहे सिद्धिभिः

॥ इति त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः सम्पूर्णं ॥

यदक्षरैकमात्रेऽपि संसिद्धे स्पर्द्धते नरः ।

पद्मालयां पद्महस्तां पद्मसम्भवसेविताम् ।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥२॥

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।

कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।

कामेश्यादिभिराज्ञयैव ललिता-देव्याः समुद्भासितं

Goddess Tripura Sundari is additionally depicted as check here a maiden carrying excellent scarlet habiliments, darkish and long hair flows and is completely adorned with jewels and garlands.

कामाक्षीं कामितानां वितरणचतुरां चेतसा भावयामि ॥७॥

इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।

सर्वभूतमनोरम्यां सर्वभूतेषु संस्थिताम् ।

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